जन्माष्टमी के पावन पर्व में करना हे लड्डू गोपाल को प्रसन्न तो जानिए सही पूजा-विधि एवं व्रत रखने का तरीका
जन्माष्टमी हिन्दु मान्यता के अनुसार, प्रमुख त्योहारों में से एक है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार नटखट नंदलाल यानी कि श्रीकृष्ण के जन्मदिन को श्रीकृष्ण जयंती या जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. आपको बता दें कि कुछ लोगों के लिए अष्टमी तिथि का महत्व सबसे ज्यादा है वहीं कुछ लोग रोहिणी नक्षत्र होने पर ही जन्माष्टमी का पर्व मनाते हैं.

श्री विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में श्रीकृष्ण ने 8वां अवतार लिया था। इस त्यौहार को देश में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। भक्त अपने आराध्य श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में व्रत रखते हैं। घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते हैं।
धर्मशास्त्रियों के मुताबिक इस दिन जो लोग व्रत रखते हैं उन्हें अष्टमी और रोहणी नक्षत्र के बाद ही पारण यानी व्रत ख़त्म करना चाहिए। लेकिन यदि किसी संयोग की वजह से दोनों तिथि एक साथ न हो तो अष्टमी या फिर रोहणी नक्षत्र उतरने के बाद ही व्रत की समाप्ति की जानी चाहिए। पूरे देश में बड़ी ही धूम-धाम से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार का बेहद ही विशेष महत्व होता है। इस दिन सभी जगह श्रीकृष्ण लीला का मंचन होता है, मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं, श्रीकृष्ण के भजन-कीर्तन किए जाते हैं।

सभी जगह मटकी फोड़ का आयोजन भी किया जाता है। देश के सभी राज्य अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं. इस दिन क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी अपने आराध्य के जन्म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं. दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं. वहीं, मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं और स्कूलों में श्रीकृष्ण लीला का मंचन होता है.
इस तरह रखे जन्माष्टमी का व्रत : जन्माष्टमी का त्योहार पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दिन लोग दिन भर व्रत रखते हैं और अपने आराध्य श्री कृष्ण का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. सिर्फ बड़े ही नहीं बल्कि घर के बच्चे और बूढ़े भी पूरी श्रद्धा से इस व्रत को रखते हैं. जन्माष्टमी का व्रत कुछ इस तरह रखने का विधान है:जो भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए. जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोला जाता है.

पूजा विधि : जन्माष्टमी के दिन व्रत के साथ ही श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। इसके लिए सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद घर में बने मंदिर में लड्डू गोपाल की मूर्ती को गंगा जल से स्नान करवाएं। लड्डू गोपाल को स्नान करवाने के लिए दूध, दही, घी, शक्कर, शहद और केसर के घोल का इस्तेमाल करें। इसके बड़ा लड्डू गोपाल को नए वस्त्र पहनकर उनका श्रृंगार करें। इसके बाद रात्रि 12 बजे लड्डू गोपाल को भोग लगाएं और फिर उनकी आरती उतारें। इसके बाद सभी लोगों को प्रसाद वितरित करें।
जय हो नन्द लाल की जय यशोदा लाल की
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की
जय हो नन्द लाल की जय यशोदा लाल की
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की
हे आनद उमंग भयो जय हो नन्द लाल की
नन्द घर आनन्द भयो जय कन्हैया लाल की