कैवाय माता मन्दिर, किणसरिया | दहिया वंश की कुलदेवी का सम्पूर्ण इतिहास | “Kewai Mata- Kinsariya”
कैवाय माता मन्दिर का इतिहास
दहिया कुल कीरत दिवी म्हैर करी नित माय ।
आदिभवानी अम्बिका किणसरिया कैवाय ।।
राजस्थान में नागौर जिले के मकराना और परबतसर तहसील के बीच त्रिकोण पर परबतसर से 6-7 की. मी. उत्तर-पश्चिम में अरावली पर्वतमाला से परिवेष्टित किणसरिया गाँव है।
जहाँ एक विशाल पर्वत श्रंखला की सबसे ऊँची चोटी पर कैवायमाता का बहुत प्राचीन और प्रसिद्ध मन्दिर अवस्थित है । नैणसी के अनुसार किणसरिया का पुराना नाम सिणहाड़िया था ।

दहिया वंश की कुलदेवी : कैवाय माता
कैवायमाता का यह मन्दिर लगभग 1000 फीट उँची विशाल पहाड़ी पर स्थित है । मन्दिर तक पहुँचने के लिए पत्थर का सर्पिलाकार पक्का मार्ग बना है, जिसमे 1121 सीढियाँ है । कैवायमाता के मन्दिर के सभामण्डप की बाहरी दीवार पर विक्रम संवत 1056 (999 ई.) का एक शिलालेख उत्कीर्ण है ।
उक्त शिलालेख से पता चलता है कि दधीचिक वंश के शाशक चच्चदेव ने जो की साँभर के चौहान राजा दुर्लभराज (सिंहराज का पुत्र) का सामन्त था विक्रम संवत 1056 की वैशाख सुदि 3, अक्षय तृतीया रविवार अर्थात 21 अप्रैल, 999 ई. के दिन भवानी का यह भव्य मन्दिर बनवाया ।
कैवाय माता जी के मंदिर में लगे एक हजार के शिलालेख में देवी के विभिन्न रूपो का वर्णन हुआ है , रक्तवर्ण नाना रूपो वाली यह देवी तुम्हारे लिये कल्याण कारी हो जिस देवी के विधी विधान से आराधना करके साधक अनेक प्रकार की सिद्दियो को प्राप्त हुये । जिसके चरण स्पर्श से अनिष्ट का आचरण करने वाले राक्षस नष्ट हो जाते है ।।वह सभी प्रयोजनों की पूर्ति करने वाली भगवती कात्यायनी तुम्हारी रक्षा करे।
तत्पश्चात शिलालेख में शाकम्भरी ( सांभर) के चौहान शासकों वाकपतिराज , सिंहराज , और दुर्लभराज , की वीरता शौर्य और पराक्रम की प्रशंसा की गयी।
उनके अधीनस्त दधीचिक ( दहिया) वंश के सामंत शासको की उपलब्धियों की चर्चा करते हुये इस वंश ( दधीचिक या दहिया ) की उत्पत्ति के विषय में लिखा हुआ है कि देवताओ के द्वारा प्रहरण ( शस्त्र ) की प्राथना किये जाने पर जिस दधीचिक ऋषि ने अपनी हड्डियॉ दी थी उसके वंशज दधीचिक या दहिया कहलाये ।
किणसरिया कैवाय माता मंदिर “Kewai Mata- Kinsariya”
इस दधीचिक वंश में पराक्रमी मेघनाथ हुआ जिसने युद्द क्षेत्र में बडी वीरता दिखाई थी, उसकी स्त्री मासटा से अतीव दानी और वीर वैरिसिंह का जन्म हुआ तथा उसकी धर्मपरायण पत्नी दुन्दा से चच्च उत्पन हुआ, इस चच्चदेव ने संसार की असारता का अनुभव कर कैलाश पर्वत के समान शिखराकृति वाली देवी भवानी केमंदिर का निर्माण करवाया था।
इनमें सबसे प्राचीन शिलालेख पर विक्रम संवत 1300 की जेठ सुदी 13 (1 जून, 1243 ई.) सोमवार की तिथि उत्कीर्ण हैं । लेख के अनुसार उक्त दिन राणा कीर्तसी (कीर्तिसिह) का पुत्र राणा विक्रम अपनी रानी नाइलदेवी सहित स्वर्ग सिधारा । उनके पुत्र जगधर ने अपने माता-पिता के निमित यह स्मारक बनवाया । मन्दिर परिसर में विद्धमान अन्य प्रमुख स्मारक शिलालेख विक्रम संवत 1350, 1354, तथा 1710 के हैं।
कैवाय माता जी के मंदिर के सम्मुख बने तिबारे की दीवार पर जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह के शासनकाल का विक्रम संवत् 1768 शक संवत 1633 अषाण सप्तमी का एक शिलालेख उत्तकीर्ण है जिसमें उनके शासनकाल में देवी जी के इस मंदिर का जीर्णोद्वार कराये जाने तथा उसके अग्रभाग में ( तिबारे) के निर्माण का उल्लेख हुआ है।