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Mehrangarh Fort मेहरानगढ़ किले का इतिहास Top 10 Amazing Information About Mehrangarh

By Jogendra Singh

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Mehrangarh Fort History भारत के राजस्थान में स्थित एक प्राचीन विशालकाय किला हैं मेहरानगढ़ किला।  जिसे जोधपुर का क़िला भी कहा जाता है। यह भारत के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है। मेहरानगढ़ किला एक बुलंद पहाड़ी पर 150 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

यह शानदार किला राव जोधा द्वारा 1459 ई0 में बनाया गया था। मेहरानगढ़ क़िला पहाड़ी के बिल्‍कुल ऊपर बसे होने के कारण राजस्थान राज्य के सबसे ख़ूबसूरत क़िलों में से एक है। सूर्यनगरी जोधपुर में अपनी भव्यता को बिखेरता यह किला प्रयटकों के आकर्षण का केंद्र है। मेहरानगढ़ किले में 7 विशाल द्वार बने हुवे है, जिनपर रियासतकालीन लड़ाइयों में प्रयोग हुई तोपों के गोलों के निशान आज भी मौजूद है।

Mehrangarh Fort History

मेहरानगढ़ किला ( Mehrangarh Fort ) की विशेषताएँ

Mehrangarh Fort का निर्माण राव जोधा द्वारा सन 1459 में सामरिक दृष्टि से बनवाया गया था। यह क़िला प्राचीन कला, वैभव, शक्ति, साहस, त्याग और स्थापत्य का अनूठा नमूना है। यह विशालकाय किला, पथरीली चट्टान पहाड़ी पर, मैदान से 150 मीटर ऊँचाई पर स्थित है और आठ द्वारों व अनगिनत बुर्जों से युक्त दस किलोमीटर लंबी ऊँची दीवार से घिरा है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं।

मेहरानगढ़ किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ और प्रेरित करने वाले नाम हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि। इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है।

इसके अतिरिक्त पालकियाँ, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघु चित्रों, संगीत वाद्य, पोशाकों व फर्नीचर का आश्चर्यजनक संग्रह भी है। परकोटे की ऊँचाई 20 फुट से 120 फुट तथा चौड़ाई 12 फुट से 70 फुट तक है। परकोटे में दुर्गम मार्गों वाले सात आरक्षित दुर्ग बने हुए थे।
मेहरानगढ़ किले में कुल सात दरवाजे है, जिनमे जयपाल (अर्थ – जीत) गेट का भी समावेश है, जिसे महाराजा मैन सिंह ने जयपुर और बीकानेर की सेना पर मिली जीत के बाद 1806 ईस्‍वी में बनाया था।

Mehrangarh Fort History
मेहरानगढ़ किला, जोधपुर

फत्तेहपाल (अर्थ – जीत) गेट का निर्माण महाराजा अजित सिंह ने मुगलो पर जीत की याद में बनाया था। किले पर पाए जाने वाले हथेली के निशान आज भी हमें आकर्षित करते है।

दुर्ग के भीतर राजप्रासाद स्थित है। दुर्ग के भीतर सिलहखाना (शस्त्रागार), मोती महल, जवाहरखाना आदि मुख्य इमारतें हैं। क़िले के उत्तर की ओर ऊँची पहाड़ी पर थड़ा नामक एक भवन है जो संगमरमर का बना है। यह एक ऊँचे -चौड़े चबूतरे पर स्थित है।

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Mehrangarh Fort ( मेहरानगढ़ किला ) इतिहास – परिचय

राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की 24 संतानों मे से एक थे। वे जोधपुर के पंद्रहवें शासक बने। शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का किला असुरक्षित है।

उन्होने अपने तत्कालीन किले से 9 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार प्रस्तुत किया। इस पहाड़ी को भोर चिडिया के नाम से जाना जाता है, क्योंकि वहां बहुत से पक्षी रहते थे राव जोधा ने 12 मई 1459 को इस पहाडी पर किले की नीव डाली महाराज जसवंत सिंह (1638-78) ने इसे पूरा किया।

Mehrangarh Fort History
मेहरानगढ़ के अंदर का सुन्दर दृश्य

इतिहास के अनुसार, किले के निर्माण के लिये उन्होंने पहाडियों में मानव निवासियों की जगह को विस्थापित कर दिया था। चीरिया नाथजी नाम के सन्यासी को पक्षियों का भगवान भी कहा जाता था। बाद में चीरिया नाथजी को जब पहाड़ो से चले जाने के लिये जबरदस्ती की गयी तब उन्होंने राव जोधा को शाप देते हुए कहा, “जोधा ! हो सकता है कभी तुम्हारे गढ़ में पानी की कमी महसूस होंगी।”

राव जोधा सन्यासी के लिए घर बनाकर उन की तुष्टि करने की कोशिश कर रहे थे। साथ ही सन्यासी के समाधान के लिए उन्होंने किले में गुफा के पास मंदिर भी बनवाए, जिसका उपयोग सन्यासी ध्यान लगाने के लिये करते थे। लेकिन फिर भी उनके शाप का असर आज भी हमें उस क्षेत्र में दिखाई देता है, हर 3 से 4 साल में कभी ना कभी वहाँ पानी की जरुर होती है।

चामुण्डा माता मंदिर, मेहरानगढ़ किला

राव जोधा को चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी होती है। राव जोधा ने 1460 मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की।

मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खोले गए थे। चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि अधिसंख्य जोधपुर निवासियों की कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी को पूजते हैं। नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

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मेहरानगढ़ स्थित शीश महल

मेहरानगढ़ का रहस्य ( Mehrangarh Fort ) और विशेषता

  1. मोती महल, जिसे पर्ल पैलेस के रूप में भी जाना जाता है, किले का सबसे बड़ा कमरा है। यह महल राजा सूर सिंह द्वारा बनवाया गया था, जहां वे अपनी प्रजा से मिलते थे।
  2. यहाँ, पर्यटक ‘श्रीनगर चौकी’, जोधपुर के शाही सिंहासन को भी देख सकते हैं। यहाँ पाँच छिपी बाल्कनी हैं जहां से राजा की पाँच रानियाँ अदालत की कार्यवाही सुनती थी।
  3. फूल महल मेहरानगढ़ किले के विशालतम अवधि कमरों में से एक है। यह महल राजा का निजी कक्ष था। इसे फूलों के पैलेस के रूप में भी जाना जाता है, इसमें एक छत है जिसमें सोने की महीन कारीगरी है। महाराजा अभय सिंह ने 18 वीं सदी में इस महल का निर्माण करवाया।
  4. मेहरानगढ़ किले के अंदर एक सुन्दर शीशमहल हे, शीश महल सुंदर शीशे के काम से सजा है। आगंतुक शीश महल में चित्रित धार्मिक आकृतियों के काम को देख सकते हैं। इसे ‘शीशे के हॉल’ के रूप में भी जाना जाता है।
  5. किले में झाँकी महल, जहाँ से शाही महिलायें आंगन में हो रहे सरकारी कार्यवाही को देखती थीं, एक सुंदर महल है। वर्तमान में, यह महल शाही पालनों का एक विशाल संग्रह है। ये पालने, गिल्ट दर्पण और पक्षियों, हाथियों, और परियों की आकृतियों से सजे हैं।
  6. लोह पोल जो की किले का अंतिम द्वार है जो किले के परिसर के मुख्य भाग में बना हुआ है। इसके बायीं तरफ ही रानियो के हाँथो के निशान है, जिन्होंने 1843 में अपनी पति, महाराजा मान सिंह के अंतिम संस्कार में खुद को कुर्बान कर दिया था।
  7.  मेहरानगढ़ के परकोटे की ऊँचाई 20 फुट से 120 फुट तथा चौड़ाई 12 फुट से 70 फुट तक है। परकोटे में दुर्गम मार्गों वाले सात आरक्षित दुर्ग बने हुए थे।

मेहरानगढ़ किले की वास्तुकला

जोधपुर के इस भव्य किले को सुनियोजित तरीके से निर्मित किया गया है। यहाँ के विशाल महलों में 5 शताब्दी की  झलक देखने को मिलती है, तो कुछ महलो में तत्कालीन वास्तुशिल्प का प्रयोग किया गया है। किले में ज्यादातर बलुआ लाल पत्थर का प्रयोग किया गया है। महलों के झरोखों की बारीक़ नक्काशी को देखने के लिए पर्यटक दूर दूर से चले आते है। किले के मुख्य आकर्षक केंद्र हे इसके विशाल सातों द्वार और भव्य महल।

Mehrangarh fort में शीश महल, मोती महल, फूल महल, दौलत खाना जैसे कई सुन्दर और भव्य महल और विशाल कक्षों का निर्माण किया गया है।

मेहरानगढ़ किले में घूमने का सबसे अच्छा समय Best Time To Visit Mehrangarh Fort In Hindi

वैसे तो आप यहाँ साल के किसी भी समय आ सकते है, लेकिन जोधपुर थार मरुस्थल की सीमा पर बसा हुवा है। इस कारण यहाँ बहुत तेज गर्मी का प्रकोप रहता है। तो अगर आप मेहरानगढ़ घूमने का प्लान बना रहे हो तो सर्दियाँ सबसे बेहतर समय है, Mehrangarh Fort घूमने के लिए। आप सर्दियों में सुबह ही किले में घूमने जाये और दिनभर इस विशाल किले में घूमने का आनंद लीजिये। यह किला प्रातः 9 बजे ही प्रयटकों के लिए खुल जाता है।

मेहरानगढ़ किले तक कैसे पहुंचे

जोधपुर शहर राजस्थान के प्रमुख शहरो में दूसरा स्थान रखता है, इसलिए यहाँ तक आप आसानी से पहुँच सकते है। जोधपुर के लिए आपको हवाई यात्रा की भी सुविधा भारत के प्रमुख शहरों से मिल जाती है। राजस्थान के लगभग सभी शहरो से सड़क द्वारा आप आसानी से जोधपुर तक पहुँच सकते है। जोधपुर के लिए ट्रेनों की सुविधा उपलब्ध हे, आप यहाँ दिल्ली, मुंबई, वाराणसी, बंगलौर जैसे बड़े शहरों से सीधे ट्रेन द्वारा पहुँच सकते है।

मेहरानगढ़ किले की फोटोज Mehrangarh Fort Images

निष्कर्ष

हमें पूर्ण विश्वास है की आपको हमारा यह लेख Mehrangarh Fort मेहरानगढ़ किले का इतिहास पसंद आया होगा। हमारी इस ब्लॉग वेबसाइट अभिज्ञान दर्पण पर सदैव यही प्रयास रहता है, की पाठकों के लिए इतिहास और भारत के विषय में रोचक जानकारी उपलब्ध कराते रहे।

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