Kuldevi

माता रानी भटियाणी ( जसोल माजीसा ) का इतिहास एवं चमत्कार की कथा, History of Jasol Majisa

माता रानी भटियाणी ( “भूआजी स्वरूपों माजीसा” शुरूआती नाम ) उर्फ भूआजी स्वरूपों का जन्म ग्राम जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर के ठाकुर जोगीदास के घर हुआ।

माता रानी भटियाणी माजीसा का इतिहास

भूआजी स्वरूपों उर्फ माता राणी भटियाणी का विवाह मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव कल्याणसिंह के साथ हुआ था। राव कल्याणसिंह का यह दूसरा विवाह था।

bhatiyani majisa

राव कल्याणसिंह का पहला विवाह राणी देवड़ी के साथ हुआ था। शुरुआत मे राव कल्याणसिंह की पहली राणी राणी देवड़ी के संतान नही होने पर राव कल्याण सिंह ने भूआजी स्वरूपों ( जिन्हे स्वरूप बाईसा के नाम से भी जाना जाता था) के साथ दूसरा विवाह किया।

विवाह के बाद भूआजी स्वरूपों स्वरूप बाईसा से राणी स्वरुपं के नाम से जाना जाने लगी। विवाह के एक साल बाद राणी स्वरुपं उर्फ रानी भटियानी ने एक बालक को जन्म दिया। जिसका नाम लालसिंह रखा गया।

माता रानी भटियाणी के संतान प्राप्ति होने से राणी देवड़ी रूठ गयी।उन्हे इससे अपने मान सम्मान मे कमी आने का डर सताने लगा था।प्रथम राणी देवड़ी के रूठे होने पर राणी स्वरुपं ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा कि अपनी माँ भवानी की पूजा अर्चना व व्रत करे। आस्था,श्रद्धा, विश्वास बढ़ाएं, माँ भवानी अवश्य अपने भक्त की आवाज सुनेगी।

माजीसा माँ के चमत्कार

राणी देवड़ी ने राणी स्वरूपं की बातों में विश्वास करके वैसा ही किया। जैसा कहा गया था।अब राणी देवड़ी भक्ति में लग गयी और कुछ समय पश्चात देवड़ी राणी ने भी एक बालक को जन्म दिया। जिसका नाम प्रताप सिंह रखा गया।

jogi das dham
माजीसा जन्म स्थल जोगीदास धाम

प्राचीन किवन्दती के अनुसार कहा जाता है कि पुत्र प्राप्ति के कुछ समय ही पश्चात एक दासी ने देवड़ी राणी को भड़काया कि छोटी राणी स्वरूपं का पुत्र प्रताप सिंह से बड़े होने पर वे ही राव कल्याण सिंह के उतराधिकारी बनेंगे और छोटे पुत्र प्रताप सिंह को उनके हुकुमत का पालन करना पड़ेगा।

दासी राणी देवड़ी को बार बार गुप्त मंत्रणा कर उनके पुत्र को राजपाट दिलवाने के लिए बहकाने लगी।इस दासी के अत्यधिक कहने पर देवड़ी राणी को भविष्य की चिंता सताने लगी और वह अपने पुत्र को उतराधिकारी बनाने के लिए हर वक्त चिंतित रहने लगी।

माजीसा माता रानी भटियाणी का देहावसान

एक दिन भाद्रपद मास की कृष्णा पक्ष की काजली तीज के दिन राणी स्वरुपं ने राणी देवड़ी को झुला झूलने के लिए बाग़ में चलने को कहा तो राणी देवड़ी ने सरदर्द का बहाना बनाकर कह दिया कि मै नहीं चल सकती तब राणी स्वरुपं ने आपने पुत्र लाल सिंह को राणी देवड़ी के पास छोड़कर झूला झूलने चली गयी।

राणी देवड़ी ने इस अवसर को देखते हुए उसने विश्वासपात्र दासी (रामायण काल के बाद की चापलूसी करने वाली दासियो को चारण कवियो द्वारा मंथरा की संज्ञा या उपमा दी गई है) को बुलाया और लाल सिंह को रास्ते से हटाने का निर्णय लिया तथा इसके बाद लाल सिंह के लिए जहर मिला दूध लेकर इंतजार करने लगी।

jasol majisa

थोड़ी देर बाद जब बालक लालसिंह खेलते खेलते दूध के लिए रोने लगा तब दासी (मंथरा) ने योजनानुसार जहर मिला दूध बालक लाल सिंह को पिला दिया।उससे उसी समय लाल सिंह के प्राण निकल गए।

कुछ समय बाद जब राणी स्वरुपं झूला झूलाकर वापस आई तो अपने पुत्र के न जागने पर जब उसने बालक को जगाने के लिए सर के नीचे हाथ डाला तो हाथ में काला खून लगा देख राणी स्वरूपं ने भी प्राण त्याग दिए।

यह बात जब राव कल्याण सिंह को पता चली तो उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हुआ और वे तत्काल राणीनिवास गए और वहां के हालत देखकर राव कल्याण सिंह बेसुध हो गए। राजा राव कल्याण सिंह को राणी स्वरुपं व कुंवर लाल सिंह को खोने का बहुत दुःख हुआ। जैसे तैसे अग्नि संस्कार किया और पत्रवाहक को राणी स्वरूपं के मायके जोगीदास गाँव के लिए तत्काल रवाना किया।

भक्ति से प्रसन्न हो भटियाणी माजीसा ने दिए दर्शन

इधर जोगीदास गाँव में से २ दमामी (मंगनियार) जसोल आ पहुंचे।राव कल्याण सिंह के महल की स्थिति को देखकर दोनों दमामियो को अचरज हुआ।जब इन दमामियो को राणी स्वरुपं के स्वर्गलोक होने का समाचार जसोल में मिला तो इनके पैरो तले जमीन खिसक गई।

घटना की जानकारी मिलने के बाद वे दोनो सीधे श्मशान घाट पहुंचे और शोक विहल होकर कागे के गीतों की झड़ी लगाते हुए राणी स्वरूपं को दर्शन देने के लिए पधारने का आह्ववान करने लगे। बार बार पुकारने पर राणी स्वरूपं ने उनको दर्शन दिए।

लेकिन उनको “भूआजी स्वरूपों माजीसा”उर्फ “राणी स्वरुपं” को देवी राणी भटियानी के रूप में देखकर विश्वास नहीं हुआ। फिर भी दमामियो ने अपनी फरियाद सुनाई इस पर राणी स्वरूपं उर्फ राणी भटियानी को दमामियो की भक्ति पर बड़ा गर्व हुआ।

उन्होंने दमामियो को इनाम के तौर पर सोने की पायल व कंगन दिए तथा उन्हे कहा कि जोगीदास गाँव में मेरे माता पिता को कहना की मै हमेशा आपके साथ हूँ। इतना कहकर राणी भटियानी अदृश्य हो गयी।

दमामियो ने भूआजी स्वरूपों माजीसा उर्फ राणी भटियानी द्वारा दिया इनाम राव कल्याण सिंह को दिखाकर घटना सुनाई पर राव कल्याण सिंह को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ।

तब राव कल्याण सिंह चौथे दिन गाँव वालों के साथ श्मशानघाट पहुंचे तथा वहां हराभरा खेजड़ी का पेड़ देखकर राजा राव कल्याण सिंह और जसोल ग्रामवासी दंग रह गए। इस चमत्कार को देखकर राव कल्याण सिंह ने नदी किनारे पर मंदिर निर्माण करवाया। जो राणी भटियानी मंदिर के नाम से जनमानस मे प्रसिद्ध है।

जिसके चमत्कार प्रभाव से आज भी जन मानस इस श्रद्धा स्थल पर प्रतिवर्ष उमड़ आता है। इस मंदिर परिसर में राणी भटियानी के साथ ही सवाई सिंह जी भोमिया को भी श्रद्धा के साथ सर नवाजा जाता है।

सवाई सिंह जी भोमिया के चमत्कार की गाथा

सवाई सिंह भोमिया जसोल मालवी राव प्रताप सिंह के द्वितीय पुत्र थे। इन दिनों इस क्षेत्र में संघ के लुटेरों के आक्रमण व गाय बैलों को ले जाकर बेचने काटने के धर्म विरुद्ध कार्य से जनता परेशान थी। राव प्रताप सिंह ने वृद्ध अवस्था में होने के कारण यह कार्य बडे पुत्र वखतसिंह को सौंपा।

sawai singh rathore

तब छोटे पुत्र सवाई सिंह राठौड़ भोमिया ने बडे भाई तखत सिंह को दुश्मनों से स्वयं युद्ध करने के लिए मना करके लुटेरों को समाप्त करने का वचन देकर वहां से निकल पडे। इसके पश्चात शूरवीर सवाई सिंह भोमिया ने कठोर तपस्या करके कुलदेवी का स्मरण करते हुए कुलदेवी से यह वर पाकर की युद्ध में जाने के बाद पीछे मुड़कर मत देखना मै तुम्हारा सहयोग करुँगी।

ऐसा कुलदेवी का वरदान पाकर सवाई सिंह भोमिया ने दुश्मनों का संहार करते हुए, रजपूती गौरव को बनाए रखते हुए, रण के मैदान को दुश्मनों के रक्त से रंजित करते हुए शूरवीरता की नई गाथा रचते हुए सर्वत्र आगे बढते हुए विजयवीर बनते जा रहे थे।

मोतियों वाली माता रानी भटियाणी की जय

तभी पीछे से घात लगाकर खडे दुश्मनों के आक्रमण का मुँह तोड़ जबाव देने की जल्दबाजी मे पीछे देखने पर कुलदेवी वरदान अनुसार सवाई सिंह का धड़ अलग हो गया। फिर भी वीर गौभक्त सवाई सिंह भोमिया ने बिना सर वाले धङ के सहारे दुश्मनों का संहार करते हुए उनका सर निशान में उठाकर जब जसोल में प्रवेश किया व पिताजी के दर्शन कर धरती माँ की गोद में समा गए।

इस प्रकार वीर गौभक्त सवाई सिंह भोमिया ने लुटेरों से अंतिम समय तक लडते हुए उनका संहार करते हुए बिना धङ वाला सर ऊँचा उठाये लडखडाते हुए पूज्यनीय पिताजी के अंतिम दर्शन कर के वीरगति को प्राप्त हो गये।

इस तरह गौरक्षा करते हुए, बिना सर के धङ के सहारे रणभूमि मे दुश्मनों के छक्के छुडाने तथा एक रक्षक के रूप मे अपनी रजपूती आन बान और शान प्रदर्शित करने के कारण सवाई सिंह भोमिया के रूप में पूजे जाने लगे।

माता रानी भटियाणी मंदिर जसोल

जसोल माता रानी का भव्य मंदिर जसोल में है और रानी भटियानी के जन्म स्थान जोगीदास गाँव में भी है, आज हर घर में माँ के पर्चे और चमत्कार की कथाएँ सुनी जाती है।

majisa temple jasol
माजीसा मंदिर, जसोल

जसोल और जोगीदास गाँव स्थित जन-जन की आराध्य देवी माता राणी भटियानी की ख्याति आज राजस्थान से गुजरती हुई पडौसी राज्यों गुजरात,मध्यप्रदेश, हरियाणा,महाराष्ट्र, और सिंध प्रदेश तक जा पहुंची है। जहाँ प्रतिवर्ष 15 लाख से अधिक श्रद्धालू भक्तजन माता राणी के दरबार में शीश नवाकर अपने सुखद सफल सौभाग्य की मन्नते माँगते है।

इस मंदिर में भाद्रपद मास की त्रयोदसी व माघ मास की चतुर्दसी को राणी भटियानी का भव्य मेला भरता है। प्रतिवर्ष साल में 2 बार भाद्रपद व माघ मास में मेला भरता है। जोगीदास गाँव माता राणी की जन्मस्थली में भी माता राणी भटियानी का भव्यमंदिर बना है जहा साल में 2 बार श्रद्धालू यात्री आते है।……….जय माता दी…~ॐ~… जय श्री माजीसा माँ…….जय माता राणी भटियानी………

Vijay Singh Chawandia

I am a full time blogger, content writer and social media influencer who likes to know about internet related information and history.

Related Articles

Back to top button