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तंवर/तौमर क्षत्रिय वंश की कुलदेवी : चिल्लाय माता सम्पूर्ण परिचय एवं इतिहास

By Jogendra Singh

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क्षत्रिय समाज कालांतर में चार महत्वपूर्ण वंशो में विभक्त हुआ , सूर्यवंश , चन्द्रवंश , रिषीवंश , और अग्निवंश , चन्द्रवंश में उत्तरीभारत के महत्वपूर्ण राजवंश कुरूक्षेत्र के अधिपति प्रारम्भ में कौरव , पांडव और यादव वंश के नाम से विख्यात हुये।

इन्ही पांडव वंशियो के वंशज आगे चलकर तौमर या तंवर क्षत्रिय कहलाये , संस्कृत के इतिहास कार लेखक तंवर को तौमर लिखते है ।। तंवरों के पूर्वज पांडवो ने वर्तमान दिल्ली ( हस्तिनापुर , इन्द्रपृस्थ )को अपनी राजधानी बनाकर शासन किया ,

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पांडवो ने अपनी कुलदेवी योगमाया को भगवान श्री कृष्ण जी के सहयोग से राजधानी में विधीवत स्थापित करवाया , जो आज भी यथावत विराजमान है , चिलाय माता की तंवर वंश कुलदेवी के रूप में पूजा आराधना करता है। इतिहास में तंवरों की कुलदेवी के अनेक नाम मिलते हैं जैसे चिलाय माता, जोग माया (योग माया), योगेश्वरी (जोगेश्वरी), सरूण्ड माता, मनसादेवी आदि। 

दिल्ली व ग्वालियर के तंवर शासको के इतिहास के अध्यन से तंवरों की कुलदेवी या आराध्य देवी योगमाया या योगेश्वरी ही नाम प्राप्त होता है ,परंतु तौमरो की अन्य शाखा तोरावटी के तौमरों की कुलदेवी का मुख्य स्थान सारूड गॉव की पहाडी पर स्थित है , तथा सारंग ( सारूड) माता के नाम से प्रसिद्द है |

इसी प्रकार दिल्ली की मुख्य शाखा ग्वालियर और ग्वालियर के शासक रामशाह तौमर जी के वंशजो के बीकानेर , जोधपुर व जयपुर में और कई प्रमुख ठिकाने स्थापित है ,यहा के तंवर भी अपनी कुलदेवी चिलाय माता जी को ही मानते है , साथ ही विभिन्न प्राप्त इतिहास ग्रंथो व लेखो में भी तंवरों की कुलदेवी के नाम योगमाया , योगेश्वरी , और चिलाय माता , सारंग देवी प्राप्त होते है , ।।

राजस्थान में तोरावाटी (तंवरावाटी) के नाम से नव स्थापित तंवर राज्य के तंवर कुलदेवी के रूप में सरूण्ड माता को पुजते है। पाटन के इतिहास मे पाटन के राजा राव भोपाजी तंवर द्वारा कोटपुतली के पास कुलदेवी का मंदिर बनवाने का विवरण मिलता है। जहाँ पहले अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने योगमाया का मंदिर बनाया था।

 अत: स्पष्ट यही होता है कि पांडवो ने श्री कृष्ण जी की उपस्थती में योगमाया का जो मंदिर बनवाया था उसी मंदिर को दिल्ली के शासक महाराजा अनंगपाल तौमर जी ने पुन: स्थापित करवाया , यह मंदिर दिल्ली में कुतुब – महरौली मार्ग पर स्थित है । योगमाया का मंदिर होने से यह स्थान योगनीपुरी कहलाता था। 

इसी मंदिर के पास महाराजा अनंगपाल तौमर जी ने अनंगपाल नामक तालाब का निर्माण करवाया था , जिसके अवशेष आज भी प्राप्त है , वही योगमाया आगे चलकर योगमाया , योगेश्वरी , सारूड ( सारंग माता ) या चिलाय माता जी के नाम से विख्यात हुई |

दिल्ली के अंतिम तौमर शासक तेजमाल (1192- 1193 ) की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अचलब्रह्म ने गोपांचलगढ ( ग्वालियर) के पास एसाहगढ में अपना नवीन राज्य स्थापित किया , जहा से दिल्ली के प्रथम शासक महाराजा अनंगपाल जी प्रथम गये थे । इसी एसाहगढ में तौमरों ने अपनी कुलदेवी का मंदिर स्थापित करवाया था ,जिनका मंदिर आज भी उपलब्ध है , तथा गोपांचलगढ ( ग्वालियर) के तौमर उनकी आज भी आराधना करते है ।।

राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर से करीब 111 कि.मी. की दूरी पर जयपुर – दिल्ली रोड पर कोटपुतली से ७ कि. मी. की पर नीमकाथाना मार्ग पर तौमर वंश की कुलदेवी श्री चिलाय माता जी का मंदिर बना है , यह मंदिर अरावली श्रंखला की पहाडी पर स्थित है , पाटन के राजा राव भोपाजी तंवर द्वारा यह मंदिर बनवाने का विवरण मिलता है। 

जहा पहले अग्यातवास में पांडवो ने योगमाया का मंदिर बनवाया था , इस स्थान को महाभारत काल में विराटनगर कहा जाता था , तंवरो की कुलदेवी श्री चिलाय माता जी ने पक्षी का रूप धारण कर राव धोतजी के पुत्र जयरथजी जाटू सिंह जी की बाल अवस्था में चील का रूप धारण कर रक्षा की थी जिसके कारण माँ योगमाया को चिलाय माता जी कहा जाता है ,

इतिहास कारो के अनुसार कुलदेवी का वाहन चिल पक्षी होने के कारण यह चिल या चिलाय माता जी कहलाई ।।  इतिहासकारों के अनुसार कुलदेवी का वाहन चिल पक्षी के होने कारण यह चिलाय माता कहलाई। राजस्थान के तंवर चिलाय माता को ही कुलदेवी मानते हैं। लेकिन चिलाय माता के नाम से कोई भी पुराना मंदिर नहीं मिलता। जिससे जाहिर होता है कि जोगमाया का नाम चिलाय माता सिर्फ तंवरावाटी में ही प्रचलित हुआ।

 चिलाय माता के दो मंदिरों का विवरण मिलता है। जाटू तंवर और पाटन के इतिहास के अनुसार 12 वीं शताब्दी में जाटू तंवरो ने खुडाना में चिलाय माता का मंदिर बनाया था और माता द्वारा मनसा (मनोकामना) पूर्ण करने के कारण उसे मनसादेवी के नाम से पुकारा जाने लगा।

एक और चिलाय माता मंदिर का विवरण मिलता है जो पाटन के राजाओं ने गुडगाँव में 14 वीं शताब्दी में बनवाया और ब्राह्मणों को माता की सेवा के लिए नियुक्त किया। लेकिन 17 वीं शताब्दी के बाद पाटन के राजा द्वारा माता के लिए सेवा जानी बन्द हो गयी थी। आज स्थानीय लोग चिलाय माता को शीतला माता समझ कर शीतला माता के रूप में पुजते है।

विभिन्न स्त्रोतों और पांडवो या तंवरो द्वारा बनवाये गये मंदिर से यही प्रतीत होता है कि तोमर (तंवर) की कुलदेवी माँ योगमाया है, जो बाद में योगेश्वरी कहलाई। और योगमाया को ही बाद में विभिन्न कारणों से स्थानीय रूप में योगेश्वरी, जोगमाया, चिलाय माता, सरुंड माता, मनसा माता, शीतला माता आदि के नाम से पुकारा जाने लगा और आराधना की जाने लगी।

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